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उत्तराध्ययन सूत्र
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भाग वाकी रहे. वहां अर्थात् चौथी पोरसी में श्रा पहुंचे तब समझना चाहिये कि प्रहर रात्रि बाकी है और उसी समय स्वाध्याय में लग जाना चाहिये । उस पोरसी के चौथे भाग में (दो बड़ी रात अवशिष्ट रहने पर) काल को देख कर
मुनि को प्रतिक्रमण करना चाहिये ।। (२१) (अब दिन के कर्तव्य विस्तारपूर्वक समझाते हैं:-) पहिले
प्रहर के चौथे भाग में (सूर्योदय से २ घड़ी वाद तक) वस्त्रपात्र का प्रतिलेखन करे फिर गुरू को वंदना कर सब
दुःखों से मुक्त करनेवाला ऐसा स्वाध्याय करे। (२२) वाद में दिवस के अंतिम प्रहर के चौथे भाग में गुरू को
वंदना कर स्वाध्यायकाल का अतिक्रम ( उल्लंघन ) किये
विना वस्त्रपाबादिक का प्रतिलेखन करे। (२३) मुनि सबल पहिले मुंहपत्ती का प्रतिलेखन करे, बाद में
गुच्छक (ोधा ) का प्रतिलेखन करे फिर अोघा को हाथ
में लेकर वस्त्रों का प्रतिलखन करे। (२४) ( अब वस्त्र प्रतिलेखन की विधि बताते हैं:) (१) वस्त्र
को जमीन से ऊंचा रक्खे, (२) उसे मजबूत पकड़े,(३) उतावला प्रतिलेखन न करे, (४) श्रादि से अंत तक वस्त्र का वरावर देखे ( यह तो केवल दृष्टि की प्रतिलेखना है), (५) वस्त्र को वीमे २ थोड़ा हिलावे; (६) वस्त्र हिलाने पर भी यदि जीव न उतरे तो गुच्छा से उसे पूंज ( माड़)
देना चाहिये। (२५) (७) प्रतिलेखन करते समय वस्त्र अथवा शरीर को
नचाना न चाहिये, (८) उसकी घड़ी न करे, वस्त्र