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उत्तराध्ययन सूत्र
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साधक भिक्षुओं की यात्रा स्वीकार कर उनकी आज्ञा सर्वथा यथार्थ एवं उचित है-ऐसा जानकर उसका
श्रादर मान किया जाता है। टिप्पणी-पांचवी समाचारी में केवल अपने ही पेट की तृप्ति की भावना
को दूर कर उदारता दिखाने का निर्देश किया है। ही में साथी साधुओं का पारस्परिक प्रेम, सातवीं में सूक्ष्म से सूक्ष्म त्रुटि का भी निवारण तथा आठवी समाचारी में गुरू का आज्ञाधीन होने का विधान किया है।
(७) (९) गुरुपूजा में अभ्युत्थान-अर्थात् उठते बैठते
अथवा अन्य सभी क्रिया में गुरू आदि की तरफ अनन्य गुन्भक्ति करने तथा उनके गुणों की पूजा करने की क्रिया को कहते हैं। (१०) अवस्था तथा उपसम्पदाउस क्रियाको कहते हैं कि अपने साथ के प्राचार्य, उपाध्याय या अन्य विद्यागुरुत्रों के पास विद्या प्राप्त करने के लिय विवेकपूर्वक रहना और विनम्र भाव से आचरण
करना । ये दस समाचारियां कहलाती हैं। (८) ( दसवी समाचारी में जहां भिक्षु रहता है उस गुरुकुल में
उमें रात्रि तथा दिवस में किस तरह की चर्या करनी चाहिये उसको सविस्तर समझाया है)। दिन के चार प्रहर होने हैं उनमें से सूर्योदय के बाद, पहिले प्रहर के चौथे भाग में ( उतने समय में) वनपात्रादि (संयमी के उपकरणों) का प्रतिलेखन करें और इस क्रिया के बाद गुम को प्रणाम कर