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समाचारी
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टिप्पणी-दिन के चार प्रहर होते हैं, इसलिये यदि ३२ घड़ी का दिन
हुभा तो ८ घड़ी का एक प्रहर मानना चाहिये । उसका चौथा भाग दो घड़ी (४८ मिनिट) हुई। जैन भिक्षुओं को अपने वस्त्रपात्रादि संयमी जीवन के उपयोगी साधनों का प्रतिदिन दो बार सूक्ष्म
दृष्टि से सम्पूर्ण निरीक्षण करना चाहिये । (९) दोनों हाथ जोड़कर पूंछना चाहिये कि हे पूज्य ! अब मैं
क्या करूं? वैयावृत्य ( सेवा ) या स्वाध्याय ( अभ्यास) इन दोनों में से आप किस काम में मेरो योजना करना चाहते हैं ? हे पूज्य । मुझे आज्ञा दीजिये।
(१०) यदि गुरूजी वैयावृत्य (किसी भी प्रकार की सेवा) करने
की आज्ञा दें तो ग्लानिरहित होकर सेवा करे और यदि स्वाध्याय करने की आज्ञा दें तो सब दुःखों से छुडानेवाले स्वाध्याय में शांतिपूर्वक दत्तचित्त होकर लग जाय ।
टिप्पणी-(१)वांचना (शिक्षा लेना), (२) पृच्छना (प्रश्न पूंछ . कर शंका समाधान करना), (३) परिवर्तना (पढ़े हुए पाठों
का पुनरावर्तन करना ), (४) अनुप्रेक्षा (पठित पाठ का मनन करना) और (५) धर्मकथा ( व्याख्यान देना) ये पांच स्वाध्याय
के भेद है। (११) विचक्षण मुनि को चाहिये कि वह दिन के समय को चार
भागों में विभक्त करे और इन चारों विभागों में उत्तर
गुणों ( कर्तव्यकों) की वृद्धि करे। (१२) ( अब चारों प्रहरों के काम क्रमशः बताते हैं) पहिले प्रहर
में स्वाध्याय (अभ्यास), दूसरे प्रहर में ध्यान, तीसरे