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उत्तराध्ययन सूत्र
अपने आवश्यक कार्य के सिवाय अपना स्थान न छोड़ने की वृत्ति (स्थान स्थिरता ), प्रश्नचर्चा तथा चिन्तन में जीनता, दोपों का निवारण, सेवाभाव, नम्रता तथा ज्ञानप्राप्ति- इन सभी गों का समाचारी में समावेश होता है ।
समाचारी होना तो संयमी जीवन की व्यापक क्रिया है । प्राण और जीवन का जितना सहभाव ( सम्बन्ध ) है उतना ही सहभाव समाचारी और संयमी जीवन में है। एक के विना दूसरा टिक नहीं सकता ।
भगवान वोले-
( १ ) हे शिष्य ! संसार के समस्त दुःखों से छुडानेवाली समाचारी ( दस प्रकारकी साधु की समाचारी) का उपदेश करता हूँ जिसको धारण कर, श्राचार परिणत कर निर्मन्थ साधु इस भवसागर को पार कर जाते
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( २ ) पहिली का नाम श्रावश्यकी, दूसरी का नाम नैपेधिकी, तीसरी का श्रापृच्छना और चौथीका नाम प्रतिपृच्छना है । ( ३ ) पांचवीं का नाम छन्दना, छट्ठी का नाम इच्छाकार, सातवीं का मिथ्याकार तथा आठवीं का नाम तथ्येतिकार है ।
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( ४ ) और नौवीं का नाम अभ्युत्थान तथा दसवीं का नाम उपसंपदा है । इस प्रकार दस तरह की साधु समाचारी महापुरुपों कहो है ।
( ५ ) ( अव उन दस समाचारियों को विशद करते हैं ) साघु.
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गमन ( उपाश्रय श्रावश्यकी सम्म
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