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________________ २९० उत्तराध्ययन सूत्र अपने आवश्यक कार्य के सिवाय अपना स्थान न छोड़ने की वृत्ति (स्थान स्थिरता ), प्रश्नचर्चा तथा चिन्तन में जीनता, दोपों का निवारण, सेवाभाव, नम्रता तथा ज्ञानप्राप्ति- इन सभी गों का समाचारी में समावेश होता है । समाचारी होना तो संयमी जीवन की व्यापक क्रिया है । प्राण और जीवन का जितना सहभाव ( सम्बन्ध ) है उतना ही सहभाव समाचारी और संयमी जीवन में है। एक के विना दूसरा टिक नहीं सकता । भगवान वोले- ( १ ) हे शिष्य ! संसार के समस्त दुःखों से छुडानेवाली समाचारी ( दस प्रकारकी साधु की समाचारी) का उपदेश करता हूँ जिसको धारण कर, श्राचार परिणत कर निर्मन्थ साधु इस भवसागर को पार कर जाते ६ 1 ( २ ) पहिली का नाम श्रावश्यकी, दूसरी का नाम नैपेधिकी, तीसरी का श्रापृच्छना और चौथीका नाम प्रतिपृच्छना है । ( ३ ) पांचवीं का नाम छन्दना, छट्ठी का नाम इच्छाकार, सातवीं का मिथ्याकार तथा आठवीं का नाम तथ्येतिकार है । wwwww ( ४ ) और नौवीं का नाम अभ्युत्थान तथा दसवीं का नाम उपसंपदा है । इस प्रकार दस तरह की साधु समाचारी महापुरुपों कहो है । ( ५ ) ( अव उन दस समाचारियों को विशद करते हैं ) साघु. स्थान } गमन ( उपाश्रय श्रावश्यकी सम्म क्ष"
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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