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________________ २८४ उत्तराध्ययन सूत्र ~ (२५) जो सचित्त (चेतनासहित जीव, पशु इत्यादि) तथा अचित्त ( चेतनारहित सुवर्णादिक) को थोड़ी भी मात्रा में बिना दिये अथवा हक्क सिवाय ग्रहण नहीं करता उसोको हम 'ब्राह्मण' कहते हैं। (२६) जो देवता, मनुष्य अथवा तिर्यंच सम्बन्धी मैथुन का मन, वचन, तथा काया से सेवन नहीं करता(२७) जैसे कमल जल में उत्पन्न होने पर भी उससे अलग रहता है उसी तरह जो काममोगों से अलिप्त (वासनारहित) रहता है उसीको हम 'ब्राह्मण' कहते हैं। (२८) जो रसलोलुपी न हो, मात्र धर्मनिर्वाह के निमित्त ही भिक्षा मांगकर जीवित रहता (भिक्षाजीवि ) हो, तथा गृहस्थों में जो आसक्त न हो ऐसे अकिंचन (परिग्रह रहित ) त्यागी को ही हम 'ब्राह्मण' कहते हैं। (२९) जो पूर्व संयोग (माता, पिता, भाई, बी आदि के संयोगों) को, ज्ञातिजनों के संयोग को तथा कुटुम्ब परिवार को एकवार त्याग कर वाद में उनके राग में या भोगों में श्रासक्त नहीं होता उसीको हम 'ब्राह्मण' कहते हैं। (३०) हे विजयघोप ! जो वेद पशुवध करने का उपदेश देते हैं वे तथा पापकृत्य कर होमी हुई आहुतियां उस यज्ञ करनेवाले दुराचारी को अन्त में शरणभूत नहीं होती क्योंकि कर्म अपना २ फल दिये विना नहीं रहते।। (३१) हे विजयवोप! माथा मुंडा लेने से कोई साधु नहीं बन जाता, ॐकार' उच्चारण करने से कोई ब्राह्मण नहीं
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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