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यज्ञीय
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हो जाता। उसी तरह घर छोड़कर जंगल में रहने मात्र से मुनि और भगवा वस्त्र पहिन लेने मात्र से कोई तापस
नहीं हो जाता। (३२) जो समभाव रखता है वही साधु है; जो ब्रह्मचर्य का
पालन करता है वही ब्राह्मण है, जो ज्ञानवान् है वही मुनि
है और जो तपस्या करता है वही तापस है(३३) वस्तुतः वर्णव्यवस्था जन्मगत ( जन्म लेने मात्र से ) नहीं
है किन्तु कर्म (कार्य) गत है। कमों ( कार्यों ) से ही ब्राह्मण होता है, कर्मों से ही क्षत्रिय होता है, कमों से ही
वैश्य होता है, और कर्मों से ही शूद्र होता है। टिप्पणी-ब्राह्मण-ब्राह्मणी के यहां जन्म लेने मात्र से कोई ब्राह्मण
नहीं हो जाता । ब्राह्मण जैसे कृत्य करने से ही सच्ची ब्राह्मणता प्राप्त होती है। ब्राह्मण होकर भी चांडाल के कृत्य करनेवाला ब्राह्मण कभी नहीं हो सकता और शूद्र भी ब्राह्मण के कृत्य कर
ब्राह्मण हो सकता है। (३४) इन सब बातों को भगवान ने बड़े विस्तार के साथ खुले
तौर पर समझाई हैं । स्नातक ( उच्च ब्राह्मण ) भी उक्त गुणों को धारण करने से ही हो सकता है। इसीलिये समस्त कमों से मुक्त अथवा मुक्त होने के लिये जो प्रयत्न
शील होरहा है उसे ही हम 'ब्राह्मण' कहते हैं। (३५) उपरोक्त गुणों से सहित जो उत्तम-बादाण हैं वे ही स्व-पर
तारक ( अपनी तथा दूसरी आत्माओं का उद्धार करने में समर्थ) हैं।