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उत्तराध्ययन सूत्र
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(१६) (मुनि ने उत्तर दियाः-) वेदों का मुख अग्निहोत्र है
( अर्थात् जिस वेद में सच्चे अग्निहोत्र का प्रधानता से वर्णन किया गया है वही वेद वेदो को मुख है ) । यज्ञों का मुख यज्ञार्थी (संयमरूपी यज्ञ करनेवाला साधु ) है, नक्षत्रों का मुख चंद्रमा है तथा धर्म के प्ररूपको मे भगवान ऋपभदेव, वीतराग होने के कारण उनके द्वारा निर्दिष्ट
किया हुआ सत्य धर्म-यही सब धर्मों का मुख (श्रेष्ठ) है। टिप्पणी-अग्निहोत्र यज्ञ में जीवरूपी कुंड है तथा नपरूपी वेदिका
है, कर्मरूपी इंधन, ध्यानरूपी अग्नि, शुभोपयोग रूपी कड़छी, शरीर. रूपी होता ( याजक ) तथा शुद्ध भावनारूपी आहुति है। जिन शास्त्रों में ऐसे यज्ञों का विधान होता है उन्हें 'वेद' कहते हैं और जो
कोई भी ऐसे यज्ञ करते हैं वे ही सर्वोत्तम याजक हैं। (१७) जैसे चन्द्र के आगे अन्य ग्रह, नक्षत्र, तारे आदि हाथ
जोड़कर खड़े रहते हैं और तरह २ की मनोहर स्तुतियां कर वन्दन करते हैं वैसे ही उन उत्तम काश्यप (भगवान्
ऋषभदेव ) को इन्द्रादि नमस्कार करते हैं। (१८) सत्य ज्ञान तथा ब्राह्मण के सत्य कर्म से अज्ञान मूढ़ पुरुप
केवल 'यज्ञ यज्ञ' शब्द चिल्लाया करते हैं किन्तु वे यज्ञ का असली रहत्य नहीं जानते और जो केवल वेद का अध्यचन एवं शुष्क तपश्चर्या किया करते हैं वे सब ब्राह्मण नहीं हैं किन्तु राख से ढंके हुए अंगार के समान हैं।
टिप्पणी केवल ऊपर से भोले भाले शांत दीखते है किन्तु उनके
हृदयों में तो पायल्पी अग्नि प्रदीप्त होरही है।'