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उत्तराध्ययन सूत्र
पांच महाव्रतरूपी भावयज्ञ करनेवाले जयघोष नाम के
एक महायशस्वी मुनि हो गये हैं। (२) पांचों इन्द्रियों के सर्व विषयों का निग्रह करनेवाले और
केवल मोक्ष मार्ग में ही चलनेवाले (मुमुक्षु) ऐसे वे महामुनि गाम गाम विचरते हुए फिर एकबार उसी बना
रस ( अपनी जन्मभूमि ) नगरी में आये। (३) और उनने वनारस नगरी के बाहर मनोरम नाम के उद्यान
में निर्दोष स्थान शय्यादि की याचना कर निवास किया। (४) उसी काल में उसी वनारस नगरी में चारों वेदों का ज्ञाता
विजयघोप नामका ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था। (५) उपयुक्त जयघोप मुनि मासखमण की महातपश्चर्या के
पारणे के लिये उस विजयघोप ब्राह्मण की यज्ञशाला में
( उसी समय ) भिक्षार्थ पाकर खड़े हुए। (६) मुनिश्री को आते देखकर वह याजक उनको दूर ही से
वहां आने से रोकता है और कहता है:-हे भिक्षु ! मैं तुझे
भिक्षा नहीं दे सकता। कहीं दूसरी जगह जाकर मांग । (७) हे मुने! जो ब्राह्मण धर्मशास्त्र के तथा चारों वेदों के पार
गामी, यज्ञार्थी तथा ज्योतिपशास्त्र सहित छहों अंगों के
जानकर, और जितेन्द्रिय हों ऐसे(८) तथा अपनी आत्मा को और दूसरों की आत्मा को ( इस
भवसागर से) पार करने में समर्थ हों ऐसे ब्राह्मणों को
ही यह पढ्स मनोवांछित भोजन देने का है। (९) उत्तम अर्थ की शोध करने वाले वे महामुनि इस प्रकार वहां
निपेय किये जाने पर भी न तो खिन्न हो हुए और न
जानकर, आर
को और
हो ऐसे