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यज्ञीय
यज्ञ सम्बन्धी
२५ मारे वेद यज्ञों के निरूपण से भरे पड़े है। जैन
। शास्त्रों का भी यही हाल है। किन्तु संसार में सच्चे यज्ञ को समझनेवाला कोई विरला ही होता है।
वाह्य यज्ञ-यह तो द्रव्य यज्ञ है। आन्तरिक (भाव) यज्ञ ही सच्चा यज्ञ है। वाद्य यज्ञ कदाचित् हिंसक भी हो सकता है किन्तु आन्तरिक यज्ञ में हिंसा का विष नहीं है, उसमें तो केवल अहिंसा का अमृत ही लवालब भरा हुआ है।। __ बाह्य यज्ञ से होनेवाली विशुद्धि तो क्षणिक और खंडित है किन्तु श्रान्तरिक यज्ञ की पवित्रता अखंड तथा नित्य है । सामान्य यज्ञ तो हरकोई कर सकता है, उसके लिये अमुक योग्यता अथवा पात्रता श्रावश्यक नहीं है परन्तु सच्चा यज्ञ करने की तो याजक को योग्यता प्राप्त करनी पड़ती है।
विजयघोप और जयघोष ये दोनों ब्राह्मण कुल में पैदा हुए थे। (कोई. कोई इतिहासकार उन्हे सगा भाई मानते है)। - उन दोनों पर ब्राह्मण संस्कृति के गहरे संस्कार पड़े हुए थे।