________________
समितियां
२७७
~
टिप्पणी-नवीन आनेवाले कर्मों के प्रवाह से दूर रहना और पूर्व
संचित कर्मों का नाश करना-इन दोनों क्रियाओं का नाम ही संयम है। ऐसे संयम के लिये ही त्यागी जीवन की रचना की गई है और उसी दृष्टि से त्याग की उत्तमता का वर्णन किया गया है ।
ऐसी योग्यता प्राप्त करने के लिये सबसे पहले बुद्धि की स्थिरता की आवश्यकता है। बुद्धि को स्थिर बनाने के लिये अभ्यास तथा संयम ये दो ही सर्वोत्तम साधन हैं । यद्यपि ये दोनों शक्तियां अन्तःकरण में अलक्षित रूप में विद्यमान हैं फिर भी उनको जागृत करने के लिये शात्रों तथा महापुरुषों के सहवास की आवश्यकता है। __यदि भाते हुए कर्मों का प्रवाह रोक दिया गया और पूर्वसंचित कर्मों को भस्म करने की उत्कट अभिलाषा जागृत हो गई तो इसके सिवाय और चाहिये हो क्या ? इतना ही बस है फिर अग्रिम मार्ग तो स्वयमेव समझ में आता जाता है।
ऐसा मैं कहता हूँइस प्रकार 'समिति' संबन्धी चौवीसवां अध्ययन समाप्त हुआ।