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उत्तराध्ययन सूत्र
आगया तो साधन तो सरल हो समझना चाहिये । जो ज्ञान आचरण में परिणित होता है वही सफल है।
ईर्यासमिति आदि की स्पष्टता (४) (१) बालंबन, (२) काल, (३) मार्ग और (४)
उपभोग-इन चार कारणों से परिशुद्धि हुई ईर्यासमिति
से साधु को गमन करना चाहिये। (५) ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र ये तीन साधन ईर्चासमिति के
अवलंबन हैं। दिवस यह ईर्या का काल है। (रात्रि को ईर्या शुद्ध न होने से संयमीको अपने स्थान से बाहर निकलने की मनाई है)। टेडेमेढे मार्ग से न जाकर सीधे सरल मार्ग से जाना यह ईर्यासमिति का मार्ग है. (कुमार्ग
में जानेसे संयम की विराधना होजाने की संभावना है।) (६) ईर्यासमिति का चौथा कारण उपयोग है । उस उपयोग
के भी ४ भेद हैं उन्हें मैं विस्तारपूर्वक यहां कहता हूँ सो
तुम ध्यानपूर्वक सुनो। (७) दृष्टि से उपयोगपूर्वक देखना इसे 'द्रव्य उपयोग' कहते हैं;
मार्ग में चलते हुए चार हाथ प्रमाण आगे देखकर चलना इसको 'क्षेत्र उपयोग', जवतक दिन रहे तभी तक चलना इसको 'काल उपयोग' और चलते समय अपना उपयोग
(ज्ञान व्यापार) ठीक २ रखना इसको 'भाव उपयोग' कहते हैं। "टिप्पणी-चलने में कोई सूक्ष्म जीव भी पग तले आकर कुचल न जाय
अथवा दूसरा कुछ नुकसान न हो इसलिये बहुत संभालपूर्वक चलना पढ़ता है। यह ईर्यासमिति धर्मी अत्यन्त सूक्ष्मता को सिद्ध करती है। जाने का प्रया
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