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समितियां
टिप्पणी-जिस तरह माता अपने पुत्र पर अत्यन्त प्रेम रखती है, उसका
कल्याण करती है वैसे ही ये आठ गुण साधु जीवन के कल्याणकारी
होने से जिनेश्वरों ने उनको 'मुनि की माताओं की उपमा दी है। (२) ईर्या, भाषा, एषणा, आदानभंडनिक्षेपण, तथा उच्चारादि
प्रतिष्ठापन ये पांच समितियां तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति
तथा कायगुप्ति ये तीन गुप्तियां हैं। टिप्पणी-(१) ईर्याः-मार्ग में बरावर उपयोगपूर्वक देखकर चलना।
(२) भापा:-विचारपूर्वक सत्य, निर्दोष तथा उपयोगी वचन बोलना। (३) एपणा:-निर्दोष तथा परिमित भिक्षा तथा अल्प वस्त्रादि उपकरण ग्रहण करना । (४) आदानभंडनिक्षेपणः-वस्त्र, , पात्रादि उपकरण (संयमी जीवन के उपयोगी साधन) उपयोगपूर्वक उठाना तथा रखना। (५) उच्चारादिप्रतिष्ठापन : मलमूत्र बलाम आदि कोई भी स्याज्य वस्तु किसी को दुःख न पहुँचे ऐसे एकान्त स्थान में निक्षेपण करना।
(१) मनोगुप्तिः-दुष्ट चिन्तन में लगे हुए मनको वहाँ से हठा कर अच्छे उपयोग में लगाना। (२) वचनगुप्तिः-वचन का अशुभ व्यापार न करना । (३) कायगुप्तिः--कुमार्ग में जाते हुए शरीर
को रोक कर सुमार्ग पर लगाना । (३) जिन इन आठ प्रवचन माताओं का संक्षेप से ऊपर वर्णन
किया है उनमें जिनेश्वर कथित १२ अंगों का समावेश हो जाता है। (सब प्रवचन इन, माताओ में ही अन्तभूत हो
जाते हैं) टिप्पणी-वारह अंगों ( अंगभूत शास्त्रों) के प्रवचन उच्च आचार 3 के गोचक हैं, राण यदि बराबर क्रिया में भावे तो ही ती
जोर जाय । साध्य ही अब हाथ में