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________________ केशिगौतमीय २६७ - ~ ~ ~ टिप्पणी-निश्चयधर्म अर्थात् इस काल में, इस समय में, और इस परिस्थिति में शासन की उन्नति कैसे हो-इस बात का हृदयतलस्पर्शी विचारणापूर्वक लक्ष्य नियत करना-यह अबाधित सत्य है। इसमें परिर्वतन नहीं हो सकता, किन्तु उन्नति कैसे करनी चाहिये । उसके लिये कौन २ से साधनों का उपयोग करना चाहिये आदि सभी बातों का निर्णय समयधर्म के हाथ में है। उनमें परिवंतन होना संभव है। __ समय धर्म की पुकार सव किसी के लिये है। समाज संस्था समय धर्म से बहुत अधिक संबंधित है। श्रमणवर्ग तथा श्रावक वर्ग ये दोनों समाज के अंग हैं। कोई भी अग उस तरफ उपेक्षा भाव न रखकर शास्त्रोक्त सत्य को पहिचान कर खूब प्रयत्न करे और सुव्यस्थित रह कर जैनशासन की उन्नति करे यही अभीष्ट है। ऐसा मैं कहता हूँइस तरह 'केशिगौतमीय' नामक २३वां अध्ययन समाप्त हुश्रा । V Makini Law L ARM PASKE NP प्रद
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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