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उत्तराध्ययन सूत्र
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(५२) केशीमुनि ने गौतम से फिर पूंछा:-"वह अग्नि कौन,
सी है सो श्राप मुझसे कहो"। केशीमुनि के इस प्रश्न
को सुनकर गौतम ने उनको यह उत्तर दिया:--- (५३) कपायें ही अग्नि है (जो शरीर, मन तथा प्रात्मा को
'सतत जला रही हैं) और ( तीर्थंकररूपी महामेव से वरसी हुई) ज्ञान, आचार और तपश्चर्यारूपी जल की धाराएं हैं। सत्यज्ञान की धाराओं के जल से वुझाई हुई मेरी कपायरूपी अग्नि बिल्कुल शांत पड़ गई है .और
इसीलिये अब वह मुझे बिलकुल भी जला नहीं सकती। (५४) हे गौतम! तुम्हारी बुद्धि सुन्दर है। तुमने मेरा संदेह
दूर कर दिया। अब मैं दूसरा प्रश्न पूंछता हूं उसका भी
आप समाधान करो। (५५) केशीमुनि ने पूंछा:- हे गौतम ! महाउद्धृत, भयंकर
तथा दुष्ट (अपने सवार को गड्ढे में डाल देनेवाला ऐसा एक ) घोड़ा खूब दौड़ रहा है। उस घोड़े पर बैठे हु। भी तुम सीधे मार्ग पर कैसे जा रहे हो ? वह धोनी
तुम्हें उन्मार्ग (खोटे मार्ग) में क्यों नहीं ले जाता ? " टिप्पणी-दुष्ट स्वभाव का घोड़ा मालिक को कभी न कमी दगा
बिना नहीं रहता। किन्तु तुम तो उस पर सवार हो फिर सीव २ अपने मार्ग पर चले जा रहे हो -भला इसका'!
कारण है ? (५६) केशीमहाराज को कैग - - - -
दौइते हुए पावेल में विष के समान जहरीले फल लगे।
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