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केशिगौतमीय
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(४६) केशीमुनि के प्रश्न को सुनकर गौतम बोलेः--उस विष
बेल को तो मैंने उखाड़ कर फेंक दिया है तभी तो मैं उस बेल के विषफलों के असर से मुक्त होकर जिनेश्वर के
न्यायमय शासन में आनन्दपूर्वक विचर रहा हूँ। (४७) केशीमुनि ने गौतम से पूंछा:-"वह बेल कौनसी है ? सो
आप मुझे कहो।" यह सुनकर गौतम ने केशीमुनि को
यह उत्तर दियाः(४८) हे मुनीश्वर ! महापुरुषों ने संसार को बढ़ानेवाली इस
तृष्णा को ही विषबेल कहा है। वह बेल भयंकर तथा जहरी फलों को देकर जीवों के जन्म-मरण करा रही है। उसका यह स्वरूप बराबर जानकर मैने उसे उखाड़ डाली है और इसीलिये अब मैं जिनेश्वर के न्यायशासन में
सुखपूर्वक चल सकता हूँ। (४९) केशीमुनि ने कहाः-हे गौतम ! तुम्हारी बुद्धि उत्तम है।
तुमने मेरी शंका का समाधान कर दिया। अब मैं दूसरा प्रश्न पूंछता हूँ, उसका भी श्राप समाधान करो। ) हे गौतम ! हृदय में खूब ही जाज्वल्यमान और भयंकर
एक अग्नि जल रही है जो शरीर में ही रहती हुई इसी
शरीर को जला रही है। उस अग्नि को तुमने कैसे । बुझाया ? (यह सुनकर गौतम ने कहा:-) महामेष ( बड़े बादल )
मपन्न हुए जल प्रबाह से पानी लेकर सतत मैं उस Sant SHथे वह बझी हई