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केशिगौतमीय
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हूँ।' ज्ञानरूपी लगाम से वश हुआ वह घोड़ा कुरस्ते
न जाकर मुझे सुमार्ग पर ही ले जाता है। (५७) केशीमुनि ने फिर प्रश्न किया:- "हे गौतम ! वह घोड़ा,
कौनसा है ? यह कृपा कर मुझे कहो।" यह सुनकर गौतम
ऋपि ने केशीमुनि को उत्तर दियाः(५८) मनरूपी घोड़ा बड़ा ही उद्धत, भयंकर, तथा दुष्ट है। वह
सांसारिक विषयों में इधरउधर सपाट दौड़ता फिरता है। धर्मशिक्षा रूपी लगाम से खान्दानी घोड़े की तरह इसका
बरावर निग्रह करता हूँ। (५९) हे. गौतम ! तुम्हारी बुद्धि उत्तम है। तुमने मेरा संशय
दूर कर दिया। अब दूसरा एक प्रश्न पूंछता हूँ उसका
भी आप समाधान करो। (६०) हे गौतम ! इस संसार में कुमार्ग बहुत हैं जिन पर जाने
से दृष्टिविपर्यास (दृष्टिफेर होने) के कारण जीव सच्चे मार्ग को पहिचान नहीं पाते और इसीलिये कुमार्ग में जाकर बहुत दुःखी होते हैं। तो हे गौतम ! आप कुरस्ते न
जाकर सुमार्ग पर कैसे बढ़ रहते हो? ६१) (गौतम ने उत्तर दिया कि हे महामुने ! ) मैंने कुमार्ग
और सुमार्ग पर जाने वाले सभी जीवों को जान लिया है ( अर्थात् कुमार्गी तथा सुमार्गी जीव के आचरण का मैंने खूब विश्लेषण कर लिया है इसीलिये मुझे कुमार्ग तथा सुमार्ग का ध्यान हमेशा रहता है।) और इसी कारण मैं ith बराबर माना जाता हूँ; गुमराह अथवा