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उत्तराध्ययन सूत्र
(३३) और साधु का वेश तो दुराचार न होने पावे उसकी सतत
जागृति रखने के लिये व्यवहार नय मात्र एक साधन है। निश्चय न.. से तो नान, दर्शन और चारित्र ये ही तीन मोक्ष के साधन हैं। इन वास्तविक साधनों में तो भगवान पार्श्वनाथ तथा भगवान महावीर दोनों का एक ही मत है ( मौलिकता में तो लेशमात्र भी अन्तर
नहीं है)। टिप्पणी-वेश भले ही भिन्न हो परन्तु तत्त्र में कुछ भी भेद नहीं है।
मिन्न वेश रखने का कारण वही है जो ऊपर लिखा है। (३५) केशीस्वामी ने कहा हे गौतम ! तुम्हारी वद्धि उत्तम
है ( अर्थात् तुम बहुत अच्छा समन्वय कर सकते हो)। तुमने मेरा संदेह दूर कर दिया। अव मैं तुमसे दूसरा एक प्रश्न पूछता हूँ, उसका भी हे गौतम ! तुम समा
धान करो। (३५) हे गौतम ! हजारों शत्रुओं के बीच में तुम रहते हो ।
वे सब तुम पर आक्रमण कर रहे हैं, फिर भी तुम दो।
सब को किस तरह जीत लेते हो ? (३६) ( गौतम ने कहा:-) मैं मात्र एक (आत्मा) ।
जीतने का सतत प्रयत्न करता हूँ, क्योंकि उस एक जीतने से पांच (इंद्रियों ) को और उन पांच (इंदिर को जीतने बोइस साल