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________________ केशिगौतमीय २५५ (३१) इस प्रकार प्रश्न पूछे जाने के बाद गौतम मुनि ने केशी मुनि को यह उत्तर दियाः-हे महामुने! समय का खूब विज्ञानपूर्ण सूक्ष्म निरीक्षण कर तथा साधुओं के मानस (चित्तवृत्ति) को देखकर ही उन महापुरुषों ने इस प्रकार के भिन्न २ बाह्य धर्मसाधन रखने का विधान किया है। टिप्पणी-भगवान पार्श्वनाथ के शिम्य सरल स्वभावी तथा बुद्धिमान थे इसलिये वे विविध रंग के वस्त्रों को भी वे केवल शरीर ढंकने के साधन हैं, भंगार के लिये नहीं हैं--ऐसा मानकर अनासक्त भाव से उनका उपयोग कर सकते थे किन्तु भगवान महावीर ने देखा कि इस काल में पतन के बहुत से निमित्त मिलते रहते हैं, इसलिये निरासक्त रहना अति कठिन है, इसीलिये उनने मुनि को प्रमाणपूर्वक तथा सादा वेश रखने की आज्ञा दी है। (अर्थात् महापुरुषों ने यह सब कुछ सोचसमझ कर तथा समय देखकर ही किया है। यह भेद करना सकारण था, निष्कारण नहीं) ऐसा सादा वेश रखने के कारण ये हैं-(१) इस समय लोक में भिन्न भिन्न प्रकार के, विकल्पों तथा वेशों का प्रचार है । इस वेश को देख कर लोगों को यह विश्वास हो कि “यह जैन साधु है"; (२) साधु को भी इस वेश से यह हमेशा ध्यान रहे कि "मैं साधु हूँ" तथा (३) इस वेश द्वारा संयम निर्वाह सब से उत्तम रीति से हो सकता है। लोक में वेश धारण करने के ये ही प्रयोजन हैं। शशि " साध्य तो है नहीं, मात्र बाह्य साधन है। यह बाह्य ARREAP पविकास में मटर
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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