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________________ २५४ उत्तराध्ययन सूत्र - % 3D ~ टिप्पणी-समझने में कठिनता होने का कारण बुद्धि की बढ़ता (मंदना) है किन्तु चारित्र धारण करने की कठिनता का कारण तत्कालीन मनुष्यों में चारित्रमैथिल्य का बढ़ जाना था। (२८) यह स्पष्ट उत्तर सुनकर केशीस्वामी बोले:-हे गौतम ! आप की बुद्धि सुन्दर है। हमारी इस शंका का समाधान हो गया। श्रव में अपनी दूसरी शंका कहता हूँ, हे गौतम ! आप उसका समाधान करो। (२९) हे महामुने! भगवान महावीर ने साधु समुदाय को प्रमाणपूर्वक केवल सफेद वस्त्र ही पहिरने की श्राज्ञा दी है, किन्तु भगवान पार्श्वनाथ ने तो विविध रंग के वस्त्र पहिरने की साधुओं को छूट दी है। " टिप्पणी-"अचेलक" शब्द का अर्थ कोई कोई “अवस्त्र अथवा वस्त्रहीन" करते हैं। यद्यपि सामान्यरीति से नन समास का अर्थ नकारवाची किया जाता है और उस दृष्टि से यह अर्थ लिया भी जा सकता। परन्तु उस कालमें भी समस्त साधुसमुदाय ववरहित (दिगम्बर न था । बहुत से दिगम्बर साधु थे बहुत से वस्त्रसहित साधु भी। क्योंकि भगवान महावीर ने धम्न की अपेक्षा वस्त्रजन्य मूर्खा को वा दरने पर विशेष जोर दिया था। इसलिये यहां पर “नन" सा के छ अर्थों में से "ईपत् (अल्प)" अर्थ करना विशेष युक्तियुक्त (३०) ये दोनों (प्रकार के ) साधु एक ही उद्देश्य सिद्धि में । हुए हैं फिर भी इस प्रकार के प्रत्यक्ष जुदे २ वेश चि धारण करने का अन्तर-झो रखले मैं रहा ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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