________________
उत्तराध्ययन सूत्र
टिप्पणी--उस समय दोनों प्रकार के मुनि थे जिनमें से एक का नाम 'जिनकल्पी ' तथा दूसरे का नाम 'स्थविरकल्पी' था । जिनक्ल्पी साधु देहाध्यास का सर्वथा त्याग कर केवल आत्मपरायण रहते थे । किंतु स्थविरकल्पियों का काम उनसे अधिक क्लिष्ट था क्योंकि उनको समाज के साथ २ मिल कर रहते हुए भी निरासक्त भाव से काम करने पड़ते थे तथा आत्मकल्याण के साथ ही साथ परकल्याग कर इन दोनों हेतुओं की तिद्धि करते हुये आगे वढना पड़ता था । इसलिये यद्यपि वे स्वल परिग्रह रखते थे फिर भी वे उसमें ममत्व नहीं रखते थे । वे परिग्रह रखते हुए भी जिनकल्पी की महान उन्नत आत्मा जैसी उज्जवलता तथा सावधानी ( अप्रमत्त भाव ) रखते थे । (१४) केशीमुनि तथा गौतममुनि इन दोनों महापुरुषों ने अपने शिष्यों का यह संशय जानकर उसकी निवृत्ति के लिये सव शिष्यसमूह के साथ परस्पर समागम करने की इच्छा व्यक्त की ।
२५०
टिप्पणी- केशीमुनि की अपेक्षा गौतम मुनि उमर में छोटे थे किन्न ज्ञान में बढ़े थे । उस समय गौतम मुनि मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अवधिज्ञान तथा मन:पर्ययज्ञान इन चार ज्ञानों के धारी थे । (१५) विनय, भक्ति तथा अवसर के ज्ञानी गौतमस्वामी अर्प शिष्यसमुदाय सहित केशीमुनि ( पार्श्वनाथ के अनुय हैं इसलिये ) के कुल को बड़ा मान कर तिन्दुक वनस उनके सन्निकट स्वयं जाकर उपस्थित हुए ।
टिप्पणी- भगवान पार्श्वनाथ भगवान महावीर के पहिले
हुए
लिये उनके अनुयायी भी बड़े माने जांयेंगे । इसमध्ये म भी लोन पूर्वज किन आत्मा
22
उनंत काल से रही
#