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________________ २४८ उत्तराध्ययन सूत्र - (७) वारह अंगों के प्रखर नाता वे गौतम प्रभु भी बहुत से शिष्य समुदायके साथ गामगाम विचरते हुए उसी श्रावस्ती नगरी में पधारे । . टिप्पणी-भव भी टन १२ अंगों में से ११ अंग मौजूद हैं, केवल एक दृष्टिबाद नाम का अंग उपलब्ध नहीं है। उन अंगों में पूर्व तीर्थकरों तथा भगवान महावीर के अनुभवी वचनामृतों का संग्रह किया गया है। (८) उस नगरमंडल के समीप कोष्टक नाम का एक उद्यान था। वहाँ पर विशुद्ध स्थान तथा तृणादि की अचित्त शय्या की याचना कर उनने निवास किया। (९) इस तरह श्रावस्तीनगरी में कुमार श्रमण केशीमुनि और महायशस्वी गौतम मुनि ये दोनों सुखपूर्वक तथा ध्यान मग्न समाधिपूर्वक रहते थे। टिप्पणी-टन दिनों गाँव के बाहर उद्यानों में त्यागी पुरुप निवास करी थे और गाँव में भिक्षा मांगकर संयमी जीवन विताते थे। १०) एक समय (मिक्षाचरी करने के निमित्त) निकले हु उन दोनों के शिष्यसमुदाय को जो पूर्ण संयमी, तपस्व, गुणी तथा जीवरक्षक (पूर्ण अहिंसक) था, एक है धर्म के उपासक होने पर भी एक दूसरे के वेश । साधु-क्रियाओं में अन्तर दिखाई देने से, एक दूस प्रति यह विचार (सन्देह ) उत्पन्न हुआ। (११) भला यह धर्म कौनसा है ? और जो हम पर हैं. म ____ाले थे. किन्द्र भारमार ने 1
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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