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________________ उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पणी-जब की यह घटना है उस समय भगवान महावीर का शासन प्रवत रहा था। भगवान महावीर के पहिले २३ तीर्थंकर-धर्म के पुनद्धारक पुरुप-और हो गये हैं। उनमें से २३वें तीर्थंकर का नाम पार्श्वनाथ है। भगवान पाश्र्वनाथ की आत्मा तो बहुत पहिले ही सिद्धपद प्राप्त कर चुकी थी, इस समय मात्र उनके दिव्य आन्दोलन तथा उनका अनुयायी मंडल ही मौजूद था। (२) लोकालोक के समस्त पदार्थों को अपने ज्ञानप्रदीप (ज्योति) के प्रकाश द्वारा प्रकट करनेवाले उन महाप्रभु के शिष्य, महायशस्वी तथा ज्ञान एवं चारित्र के पारगामी केशीकुमार नाम के श्रमण उस समय विद्यमान थे। (३) वे केशीकुमार मुनि, भतिज्ञान, श्रुतनान तथा अवधिज्ञान इन तीन ज्ञानों के धारक थे। एक बार बहुत से शिष्यों के साथ गामगास विचरते हुए वे श्रावस्तीनगरी में पधारे। टिप्पणी-जैनदर्शन में ज्ञान की ५ श्रेणियों हैं :-(१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्ययज्ञान ती (५) केवलज्ञान । मतिज्ञान ( अथवा मति मज्ञान ) तथा ज्ञान (अथवा श्रुत अज्ञान) ये दो ज्ञान तो याचन्मान प्रालि को तरतम (कमज्यादा ) प्रमाण में होते हैं। शुद्ध ज्ञान को सज्ञान कहते हैं और जो ज्ञान अशुद्ध अथवा विपर्यासवाला है से अज्ञान कहते हैं। सम्यक् अवरोध (नानना) इसक्स मतिज्ञान है और इससे भी अधिक विशिष्ट ज्ञान को श्री कहते हैं । यह ज्ञान जिसको जितनी मात्रा में अधिक होगा है " ही उसका बुद्विवैभव भी अधिक होगा। अवधिमध्यान्न arrANTRA
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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