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________________ केशिगौतमीय २४५ सामने रखकर गति करते जाने में ही सत्य की, धर्म की, तथा शासन की रक्षा अन्तहित है। • आज से लगभग २५०० वर्ष पूर्व भगवान महावीर के समय की यह कथा है। भगवान महावीर ने समयधर्म को पहिचान कर साधुजीवन की चर्या में महान परिवर्तन किया था। पहिले से आती हुई श्री पार्श्वनाथ की परंपरा में बहुत कुछ नवीनता ला दी थी तथा कठिन विधिविधान स्थापित कर जैनधर्म का पुनरुद्धार किया था। समयधर्म को वरावर पहिचानने के कारण ही जैनशासन की धर्मध्वजा तत्कालीन वेद तथा बौद्ध धर्मों के शिखर पर फरकने लगी थी। भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा को माननेवाले केशिश्रमण सपरिवार विहार करते हुए श्रावस्तीनगरी में पधारे थे। उसी समय भगवान महावीर के गणधर गौतम भी सपरिवार वहां चारे। दोनों समुदायों का मिलाप वहां हुआ। एक संघ शिष्यों को दूसरे संघ के शिष्यों को एक ही धर्म किंतु दूसरी या पालते हुए देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ। शिष्यों की का का निवारण करने के लिये दोनों ऋषिपुंगव (केशीमुनि गौतम ) मिले-भेटे। परस्पर विचारों का समन्वय था और अन्त में वहीं पर केशीमुनीश्वर ने समयधर्म को सारा और भगवान महावीर की परंपरा में दीक्षित १" जैनशासन का जयजयकार कराया। भगवान वोलेसर्वज्ञ (सब पदार्थों तथा तत्वों के संपूर्ण :
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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