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केशिगौतमीय ..
MIREAK
केशिमुनि तथा गौतम का संवाद
पांच महाव्रत-ये साधु के 'मूलगुण' कहलाते है।
श्रात्मोन्नति के ये ही सच्चे साधन हैं। वाकी की दृसरी क्रियाएं 'उत्तर गुगा' कहलाती है और उनका उही मूलगुणों को पुष्ट करना है।
म मूल उद्देश्य कर्मबंधन से मुक्त होना अथवा मोक्ष की दर (प्राप्ति) करना है और उस मार्ग में जाने के मूलभूत में तो किसी काल में, किसी भी समयमें, किसी भी परिस्ि में परिवर्तन नहीं होता। सत्य संदेव त्रिकालाबाधित है, उसे कोई भी बदल नहीं सकता।
... (उस २ किन्तु उत्तर शुगों तथा क्रियायों के विधिविधानी।
(आवेश समय तथा परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन हुए हैं, ईडी और हॉग भी। समयधर्म की अावाज की - .
हरि ठतरह
स्थनेमि पद्यपि पूर्वजन्मनविर थे, आत्मध्यान में गाले थे. किनारमानंद काल से रहो ...