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________________ थनेमीय २४३ ज्ञान, ध्यान और वैराग्य अपूर्ण था हाथी को खींचने के लिये हाथी की ही जरूरत पड़ती है । अनंतकालीन वासनाओं के बीजों को नष्ट करने के लिये आत्मशक्ति का सूर्य अत्यंत प्रखर होना चाहिये । रथनेमि अभी तक उस कक्षा को प्राप्त नहीं हुए थे इसीलिये लेशमात्र निमित्त पाते ही वे डाँवाडोल हो गये । इस प्रसंग में राजीमती का तीव्र तपोबल तथा निर्विकारिता प्रत्यक्ष सिद्ध होती है । ऐसे कठिन प्रसंग में उनका यह धैर्य तथा पराक्रम ये दोनों उनके सीमातीत भात्मबल के अकाट्य प्रमाण हैं । रथनेमि भी पूर्वयोगी थे इसीलिये तो एक संकेत मात्र से अपने मार्ग पर आगये नहीं तो परिणाम क्या आता उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । उन्हें केवल एक संकेत की जरूरत थी और वह उन्हें राजमती द्वारा मिल गया । ; धन्य हो, धन्य हो, उस योगिनी और योगीश्वर को ! प्रलोभन के प्रबल निमित्त में फंस जाने पर भी ये दोनों भाष्माएं भढोल - अकंप रहीं और उत्तम आधार पर स्थिर रहकर दोनों ही आत्मज्योति में स्थिर हुईं । ऐसा मैं कहता हूँ तरह 'रथनेमीय' नामक बाईसवां अध्ययन समाप्त हुआ ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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