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उत्तराध्ययन सूत्र
हुए अपने नरम केशों को स्वयमेव ढुंचन कर दीक्षा
धारण की। (३१) कृष्ण वासुदेव ने मुंडित तथा जितेन्द्रिय राजीमती को
श्राशीर्वाद दिया :-हे पुत्री! इस भयंकर संसार को
शीघ्र पार करो।" (३२) जब ब्रह्मचारिणी तथा विदुपी राजीमती ने दीक्षा ली थी
तब उनके साथ उनकी बहुत सी सहेलियों तथा सेवि
काओं ने दीक्षा धारण की। (३३) एक बार गिरनार पर्वत पर जाते हुए, मार्ग में बहुत वर्षा
होने से राजीमती के वस्त्र पानी में तरबतर हो गये और अंधकार के घिर आने से वे पास की एक गुफा में खड़ी
हो गई। टिप्पणी-अकस्मान से जिस गुफा में जाकर राजीमती खड़ी हुई थी
टसीमें समुद्रविनय के पुत्र राजकुमार रथनेमि, जिनने पूर्ण यौवन
में दीक्षा ली थी, वे भी ध्यान धरे बैठे हुए थे। (३४) गुफा में कोई नहीं है ऐसा अनुमानकर तथा अन्धकार
के कारण राजीमती अपने भांजे हुए कपड़ों को उतारने लगी और विलकुल नग्न होकर उनको सुखाने लगी। इस दृश्य से रथनेमि का चित्त विपयाकुल हो गया। इसी
समय राजीमती की दृष्टि भी उस पर पड़ी। ' टिप्पणी-एकान्त अति भयंकर वस्तु है। आत्मा में बीज रूप में छिपी
वासनाएं एकान्त देखकर, राख में छिपी हुई आग की तरह, रस नगरी फिर उसमें स्त्री का और वह भी नग्न-का अन कभा गाय को भी चलायमान कर डालता है। प्रौढ