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उत्तराध्ययन सूत्र
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के साथ विवाह करने के लिये श्रीकृपा महारान ने - राजीमती नाम की कन्या की मंगनी की थी। टिप्पणी-संघयण (संहनन) अर्थात् शरीर का गठन। गठन की दृष्टि
से शरीर पांच प्रकार के होते हैं और उनमें से वज्रऋपभनाराच. संघयण सबसे श्रेष्ट होता है। यह गरीर इतना तो मजबूत होता है कि महापीड़ा को भी वह आसानी से सह सकता है। नेमिरान बाल्पकाल से ही सुसंस्कारी थे। गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की उनकी लेशमात्र भी इच्छा न थी। वे तो वैराग्य में दुवै हुए थे। परन्तु अपने चचेरे भाई कृष्ण महाराज की आज्ञा शिरोधार्य करके वे चुप रहे। टस मौन का "मौन अर्धसम्मति” के अनुसार ययेष्ठ मतलय लेकर कृष्ण महाराज ने उग्रसेन महाराजा से टनको रूपवन्ती
कन्या रालीमतो की मंगनी की। (७) वह राजीमती कन्या भी उत्तम कुल के राजा उग्रसेन की पुत्री
थी। वह सुशीला, सुनयना, तथा त्रियों के सर्वोत्तम लक्षणों
से युक्त थी। उसकी कांति विजली जैसी दीप्तिमान थी। (८) (जब कृष्ण महाराज ने उसकी मंगनी की तब) उसके
पिता ने विपुल समृद्धिशाली वासुदेव को सन्देश भेजा कि यदि कुमार श्री नेमिनाथ विवाह के लिये यहां
पधारेंगे तो में अपनी कन्या उनको अवश्य व्याह दूंगा।' टिप्पणी- उन दनों क्षत्रिय कुल में ऐसा रिवाज था (और यह रिवाज
अघ भी महाराष्ट्र में बहुत जगह प्रचलित है ) कि वधु के सगे सन्यन्धी उसको लेकर वर राना के नगर में आ जाते थे और वहीं से ठप रच कर बढ़ी धूम धाम के साथ विवाह करते थे। किसी रखकर सस्टम्खों में ऐसा रिवाज था कि वधू का विवाह वरराना बाल कभी गर्विचार या ऐसे ही किसी अन्य चिन्ह के साथ करा Pram.c ::