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रयनेमीय
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पाकर किस प्रकार सावधान हो जाती है । और ऐसी सावधान प्रात्मा क्या नहीं कर सकती श्रादि के आदर्श दृष्टांत इस अध्ययन में वर्णित हैं।
भगवान बोले(१) पूर्वकाल में, शौर्यपुर (सौरीपुर ) नामक नगर में राज
लक्षणों से युक्त तथा महान ऋद्धिमान वसुदेव नामका
राजा हो गया है। (२) उस राजा वसुदेव के देवकी तथा रोहिणी नामकी दो
रानियां थी। उनमें से रोहिणी के बलभद्र (बलदेव)
तथा देवकी के कृष्ण वासुदेव ये दो सुन्दर पुत्र थे। (३) उसी सोरीपुर नगर में एक दूसरे महान ऋद्धिमान तथा
राज लक्षणों से युक्त समुद्रविजय नामके राजा रहते थे। (४) उनके शिवा नामकी रानी थी और उसके उदर से महा
यशस्वी, समस्त लोक का स्वामी, इन्द्रियों के दमन करने वालों में श्रेष्ठ अरिष्ठनेमि नामका भाग्यवान पुत्र उत्पन्न
हुआ था। (५) वह अरिष्टनेमि शौर्य, गम्भीर आदि गुणों से तथा सुस्वर
से युक्त थे तथा उनका शरीर स्वस्तिक, शंख, चक्र, गदा, श्रादि एक हजार पाठ उत्तम लक्षणों से युक्त था। उनके
गोत्र का नाम गौतम था। तथा शरीर का रंग श्याम था। (६) वे वऋषभनाराचसंधयण तथा समचतुरस्त्र संस्थान
(चारों तरफसे जिस शरीर की प्राकृति समाजको थे। उनका उदर मच्छ के समान रम की