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रथनेमीय
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रथनेमि संबंधी
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पारीर, संपत्ति तथा साधन ये सब शुभकर्म (पूर्व पुण्य)
। के उदय से ही मिलते है। यदि पुण्यानुबंधी ( पुण्य का वह फल जिसका पुण्य कार्यों में ही व्यय हो), पुण्य होगा तो प्राप्त साधनों का उपयोग सन्मार्ग में ही होगा तथा वे उपादान में भी सहकारी होंगे।
शुद्ध उपादान अर्थात् जीवात्मा की उन्नत दशा। ऐसी उन्नत दशावाली श्रात्मा भोगों के प्रवल प्रलोभनों में पड़नेपर भी केवल छोटा सा निमित्त मिन्नते. ही आसानी से छट भागती है।
नेमिनाथ कृष्ण वासुदेव के चचेरे भाई थे। पूर्वभव के प्रबल पुरुषार्थ से उनका उपादान शुद्ध हुआ था। उनकी आत्मा स्फटिक मणि के समान निर्मल थी। इससे भी अधिक उन्नत उसे जाना था इसीलिये वह इस उत्तम राजकुल में मनुरूप में अवतीर्ण हुई थी। . यौवनपूर्ण सर्वांग सौम्य शरीर तथा
पति के