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उत्तराध्ययन सूत्र
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जाकर फिर लौटना न पड़े) अर्थात् मोक्ष गति को प्राप्त
टिप्पणी-गलेशी अवस्था अर्थात् भदोल अवस्था। जैनदर्शन में ऐसी
स्थिति निष्कर्मा योगीश्वर की बताई है और इस उच्च दशा को प्राप्ता होकर तत्क्षण ही वे भारमसिन्द, बुद्ध और मुक्त हुए।
सरल भाव, तितिक्षा, निरभिमानिता, अनासक्ति, निंदा या मांसा में समभाव, प्राणीमात्र पर मंत्रीभाव, एकांत वृत्ति, तथा सतत अप्रमत्तता-ये आठ गुण त्यागधर्म रूपी इमारत की नींव है। यह नींव जितनी दृढ़ तथा मजबूत होगी उतना ही त्यागी जीवन उच्च तथा सुवासित होगा। इस सुवास में अनन्त भवों की वासनारूपी दुर्गघि नष्टभ्रष्ट हो जाती है और आत्मा ऊँची होते होते अन्तिम ध्येय को प्राप्त कर लेती है।
ऐसा मैं कहता हूँ:इस प्रकार 'समुद्रपालीय' नामक इक्कीसवां अध्ययन, समान हुआ।