________________
उत्तराध्ययन सूत्र
(२६) एक ही माता के पेट से जन्मे हुए मेरे छोटे बड़े भाई भी
मुझे मेरी पीड़ा से छुड़ा न सके-यही मेरी अनाथता है । (२५) हे महाराज ! छोटी और बड़ी मेरी सगी बहनें भी मुझे
इस दुःख स न बचा सकी-यह मेरी अनायता नहीं है
तो क्या है ? (२८) हे महाराज ! उस समय मुझ पर अत्यन्त प्रेम करनेवाली
पतित्रता पत्नी यांसूभरे नेत्रों द्वारा मरे हृदय को भिगो
रही थी। (१९) मेरा दुःख देख कर वह नवयौवना मुम से जान-अजान'
में अन्न, पान, स्नान या सुगन्धित पुप्पमाला अथवा विलपन आदि कुछ भी (शृङ्गार) नहीं करती थी ।
(सब शृङ्गार का रसने त्याग कर रक्खा था ।) (३०) और हे महाराज ! एक क्षण के लिये भी वह सहचारिणी
मेरे पास से दूर न होती थी। (इतनी अगाध सेवा द्वारा भी ) वह मेरी इस वेदना को दूर न कर सकी
यही मेरी अनाथता है। (११) इस प्रकार चारों तरफ से असहायता का अनुभव होने से
मैंने सोचा कि इस अनन्त संसार में ऐसी वेदनाएं
सहन करनी पड़ें यह बात बहुत असह्य है । २) इमलिये लो अबकी बार में इस दामण वेदना से छूट 3' जाऊँ तो मैं क्षांत( क्षमाशील ) दान्त तथा लिरारम्भी हो कर तत्क्षण ही संयम धारण करूंगा। राजन् ! रात्रि को ऐसा निश्चय करके मैं सो गया और