________________
महा निग्रंथीय -
२०९,
(६) अहा ! कैसी इनकी कान्ति है ! कैसा इनका अनुपम रूप
है ? अहा ! इन आर्य की कैसी अपूर्व सौम्यता, क्षमा,
निर्लोभता तथा भोगों से निवृत्ति है ? . (७) उन मुनि के दोनों चरणों को नमस्कार करके, प्रदक्षिणा
देकर न अति दूर और न अति पास इस तरह • खड़ा हो तथा हाथ जोड़कर महाराज श्रेणिक उनको इस तरह पूंछने लगेःहे आय ! इस तरुणावस्था में भोगविलास के समय
आपने दीक्षा क्यों ली है ? इस उप चारित्र में आपको ऐसी क्या प्रेरणा मिली. जिससे आपने इस युवावय में अभिनिष्क्रमण किया ? आदि सभी बातें मैं आप से सुनना
चाहता हूँ। (९) मुनि ने कहा:-हे महाराज ! मैं अनाथ हूँ। मेरा रक्षक
कोई नहीं है, और अभी तक ऐसा कोई कृपालु मित्र
भी मुझे नहीं मिल सका है। (१०) यह सुनकर मगध देश का अधिपति राजा श्रेणिक हैंस
पड़ा। क्या आप जैसे प्रभावशाली तथा समृद्धिशाली
पुरुष को अभी तक कोई स्वामी नहीं मिल सका ? टिप्पणी-योगीश्वर का ओजस् देखकर उनका सहायक कोई नहीं है
यह बात असंगत (विश्वास के न योग्य ) लगी और इसीलिये महा.
राजा ने यह पूंछा था। . (११) हे संयमिन् ! यदि आपका कोई सहायक नहीं है तो
(सहायक ) होने को तैयार हूँ। मनुष्य भव (जन् । सचमुच अत्यन्त दुर्लभ है। मित्र तथा स्वजनों से वे
१४