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उत्तराध्ययन सूत्र
राजगृही का राजा श्रेणिक वहां श्रापहुंचा और उन युवा योगी. श्वर की प्रसन्न मुखमुद्रा तथा देदीप्यमान आत्म ज्योति से प्रदीप्त त्यागी दशा देखकर उन पर मुग्ध हो गया। क्या ऐसे युवान भी त्यागी हो सकते है ? यह प्रश्न बार २ उसके मन को क्षुब्ध करने लगा । इस योगी के विशुद्ध व्यान्दोलन ने श्रेणिक के हृदय में जो हलचल मचा दी थी उसका निरीक्षण करना प्रत्येक मुमुक्षु के लिये अत्यावश्यक है ।
भगवान बोले:
(१) अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा साधु ( संयमी पुरुषों ) को भाव पूर्वक नमस्कार करके परमार्थ ( मोक्ष ), दाता धर्म की यथार्थ शिक्षा ( व्याख्या ) कहता हूँ सो तुम ध्यान पूर्वक सुनोः -
( २ ) अपार संपत्ति के स्वामी तथा मगध देश के नराधिप श्रेणिक महाराजा मंडितकुक्षि नामक चैत्य की तरफ. विहार यात्रा के लिये निकले ।
( ३ ) भिन्न २ प्रकार की लतावृक्षों से व्याप्त, विविध पुप्पो तथा फलों से मंडित तथा विविध पक्षियों से सेवितं वह उद्यान सचमुच नन्दनवन जैसा शोभित था ।
( ४ ) वहां एक वृक्ष के मूल में बैठे हुए सुख ( भोगने ) के योग्य सुकोमल, पद्मासन लगाये ध्यानस्थ एक संयमी साधु को उनने देखा ।
वह राजा ( उस ) योगीश्वर के उस रूप को देखकर अत्यन्त कौतूहल को प्राप्त हुआ ।