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महा निग्रंथीय
महा निग्रंथ मुनि संबंधी
प्रारीर की वेदना दूर करने की कदाचित कोई औषधि
" होगी । बाह्य बंधनों की वेदना को शांत करने के भी शस्त्र (औजार) मिल जायगे, किन्तु गहरी उतरती जाती हुई 'श्रात्म-वेदना को दूर करने की औषधि बाहर (अन्यत्र) कहीं भी नहीं मिल सकती। आत्मा की अनाथता दूर करने में वाह्य कोई भी शक्ति काम नहीं आती। आत्मा की सनाथता के लिये 'श्रात्मा ही की सावधानता चाहिये। दूसरे अवलंब (साधन) तो जादूगर के तमाशे के समान केवल ढोंग हैं। प्रात्मा के अवलंबन ही आत्मा के सच्चे साधन हैं।
अनाथी नाम के योगीश्वर संसार की अनित्यता का अनुभव कर चुके थे। राज्य वैभव के समान ऋद्धि, अपार भोग'विलास, रमणियों का आकर्षण तथा माता पिता का अपाया। अपत्यस्नेह आदि सभी को उनने बलपूर्वक त्याग दिया। ___ एक समय की बात है कि वे युवा तेजस्वी त्यागी वि उद्यान के एकान्त कोने में ध्यानस्थ बैठे थे। उसी समय अकस