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मृगापुत्रीय
(९१) अहंकार, कषाय, दंड, शल्य, भय, हास्य, शोक, तथा
वोसना से निवृत्त होकर वे स्वावलंबी वने। टिप्पणी-दण्ड नीन प्रकार के होते हैं। (१) मन दण्ड, (२) वचन, ___ दण्ड, और (३) काय दण्ड । शल्य भी तीन प्रकार की होती है ।
(१) माया, (२) निदान (३) मिथ्यात्व । कपायें ४ प्रकार की हैं।
(१) क्रोध, (२) मान, (३) माया और (४) लोभ । (९२) इस लोक तथा परलोक संबंधी आशा से रहित हुए ।
भोजन मिले या न मिले, कोई शरीर पर चंदन लगावे या
मारे-वे दोनों दशाओं में समवर्ती हुए । (९३) तथा पापों के अप्रशस्त आस्रव ( कर्मागमन ) से सब
तरह से रहित बने तथा श्रात्म ध्यान के योगों द्वारा कषायों
का नाश करके वे प्रशस्त शासन में स्थिर हुए। (९४) इस तरह ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, तथा विशुद्ध भाव--
नाओं से अपनी आत्मा को विशुद्ध बनाकर(९५) बहुत वर्षों तक चारित्र (साधुत्व) का पालन कर एक
मास का अनशन कर अंत में श्रेष्ठ सिद्धगति को प्राप्त हुए। टिप्पणी:-अनशन दो प्रकार के होते हैं। (१) मरणपर्यन्त का (आयुका
अन्तकाल माया देखकर मरणपर्यन्त आहार न करना) (२) काल
मर्यादित (अमुक मुद्दत तक भाहार न करना) (९६) जैसे राजर्षि मृगापुत्र तरुण वय में ही भोगोपभोगों से
निवृत्त हो सके वैसे ही तत्वज्ञ पंडित पुरुष भोगों से सहा,
निवृत्त होते हैं। (९७) महा प्रभावशाली तथा महान यशस्वी मृगापुत्र कसे
सौम्य चरित्र सुनकर उत्तम प्रकार की तपश्चर्या तथा