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उत्तराध्ययन सूत्र
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बनी हुई शराब बहुत पसंद थी तो यह ले शराव! ऐसा कहकर उनले अनेक बार मेरे ही शरीर के रक्त तथा चरवी
निकाल तथा तपाकर मुझे पिलाया है।। (७१) भयसहित, उद्वेग सहित, दुःख सहित पीड़ित मैंने अत्यन्त
दुःख पूर्ण वेदनाओं के अनेक अनुभव किये हैं। ' (७२) नरकयोनि में मैंने तीव्र, भयंकर, असह्य, महाभयकारक,
घोर एवं प्रचंड वेदनाएं अनेक बार सहन की हैं। (७३) हे तात ! मनुष्य लोक में जैसी भिन्न २ प्रकार की वेदनाएं
सही जाती हैं उससे अनन्त गुनी वेदनाएं नरक में
भोगनी पड़ती हैं। (७४) हे माता-पिता ! जहां पलक मारने ( पलमात्र) तक के
लिये भी शांति नहीं है ऐसे सर्व भवों में मैंने असांताएं
(वेदनाएं ) सही हैं। _ (७५) यह सुनकर माता-पिता ने कहा:-“हे पुत्र ! जो तेरी
इच्छा है तो भले ही खुशी से दीक्षा ग्रहण कर किंतु चारित्र धर्म में दुःख पड़ने पर प्रतिक्रिया (इलाज) नहीं होती
क्या यह तुझे खवर है" (७६) मृगापुत्र ने जवाब दिया:--"श्राप जो कहते हैं वह सत्य
है। परन्तु मैं श्राप से यह पूंछता हूँ कि जंगल में पशु
पक्षी विचरते हैं उनके ऊपर कष्ट पड़ने पर उनकी प्रतिक्रिया • कौन करता है"
अंगी-पशुपक्षियों के कष्ट जैसे उपाय किये यिना ही शान्त हो जाते है वैसे ही मेरा दुःख भी शान्त हो जायगा । ७) जैसे जंगल में अकेला मृग सुख से विहार करता है वैसे