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मृगापुत्रीय
(६४) मोटे जाल के समान छोटी २ मछलियों को निगल जाने वाले मगरमच्छों के सामने एक छोटे से मच्छ की तरह परवशता के कारण बहुत बार मैं परमाधार्मिकों द्वारा ; पकड़ा गया, खींचा गया, फाड़ा गया और मारा गया । (६५) जिस तरह कांटे वाली तथा लेपवाली जालों में पक्षी विशेषतः फांसे जाते हैं उसी तरह मैं परमाधार्मिकों द्वारा अनेक बार पकड़ा गया, लेपागया, बांधा गया तथा मारा
गया ।
(६६) बढ़ई जिस तरह वृक्ष के टुकड़े २ कर देता है वैसे ही परमधार्मिकों ने कुल्हाड़ी तथा फरसों द्वारा मुझे चीर डाला, मूंज की तरह वंट डाला, कूट डाला तथा छील डाला । (६७) जैसे लुहार चीमटा तथा घन से लोहे को टीपता है वैसे गया हूँ और
ही मैं भी अनंतवार कूटा गया हूँ, भेदा मारा गया हूँ ।
(६८) मेरे बहुत अधिक चीत्कार तथा रुदन करने पर भी तांबा, लोहा, सीसा, आदि धातुओं को खूब खौलती हुई गरम करके मुझे जबर्दस्ती पिलाया है ।
(६९) ( उक्त धातु प्रवाहों को मुझे पिलाते २ परमाधार्मिक यों कहते जाते थे:-) ओ अनार्य कार्य करने वाले ! तुझे पूर्वभव में मांस बहुत प्रिय था तो ले यह मांस पिंड ऐसा कह कर उनने श्रमि से लाल तप्त चिमटों से शरीर का मांस नोंच २ कर तथा उसे अग्नि में तपा जबर्दस्ती मेरे मुँह में अनेक वार हँसा था ।
( ७० ) ( तथा तुझे ) पूर्वभव में गुड़ तथा महुडे श्रादि