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उत्तराध्ययन सूत्र
(५७) चिताओं में रख कर जिस तरह भैंसों को भून डालते हैं वैसे ही पापकर्मों से वेष्टित मुझे पराधीन रूप से प्रदीप्त अभि में डाल कर भूना है तथा जला कर भस्म कर डाला है।
(५८) ढेंक तथा गिद्ध पक्षियों के रूप धर कर लोहे की सणसी के समान मजबूत चोंचों द्वारा रुदन करते हुए मुझ को परमाधार्मिकों ने अनंत वार चोंचें मार २ कर दुःख दिया है ।
(५९) नरक गति में प्यास से बहुत पीड़ित होकर मैं इधर-उधर दोड़ता फिरा और वैतरणी नदी में पानी देखकर मैं उधर दौड़ पड़ा | किन्तु उस छुरा को सी पैनी धार वाले पानी ने मेरे अंगभंग कर डाले ।
(६०) ताप से पीड़ित होकर असि ( तलवार ) पत्र नामक वन में ( छाया की आशा से) गया था। वहां वृक्ष के नीचे बैठा ही था कि फट ऊपर से तलवार के समान धारवाले पत्तों के पढ़ने से मैं अनन्तवार छेदा गया ।
(६१) मुग्दर, मूसल नामक शस्त्रों, शूलों, तथा
सल्लाखों द्वारा मेरे अंगउपांग सव छिद गये थे और ऐसे दुःख मैंने अनंतवार सहन किये हैं।
(६२) छुरी की तीक्ष्ण धार से मेरी अनन्तवार खाल उतारी गई तथा अन्तवार मैं कैचियो द्वारा काटा और छेदा गया हूँ ( वहां ) शिकारी की कपट जालों में पकड़ा जाकर मृग की तरह परवशता के कारण बहुत बार बांधा गया, रूँधा गया तथा मुझ पर बोझ लादा गया ।
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