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________________ मृगापुत्रीय १९९९ (५१) कन्दु कुंभियों में असहाय ऊंचा बँधा हुआ तथा जोर २ से, चिल्लाता हुआ मैं आरा तथा क्रकच (शस्त्र विशेष) आदि द्वारा अनेक बार चीरा गया हूँ। (५२) अति तीक्ष्ण कांटों से व्याप्त ऐसे सेंमल वृक्ष के साथ बाँधकर तथा आगे पीछे उल्टा सुल्टा खींचकर परमाधार्मिकों द्वारा दी गई यातनायें मैंने अनेक बार सहन की हैं। टिप्पणी-सेंमल का वृक्ष ताड़ से भी अधिक ऊँचा होता है। (५३) पापकर्म के परिणाम से मैं पूर्वकाल में बड़े २ यंत्रों में गन्ने की तरह अति भयंकर चीत्कार करता हुआ अनेक बार पेरा गया हूँ। (५४) सूअर तथा कुत्ते के समान श्याम शवल जाति के परमा धार्मिक देवों ने अनेक बार तड़फा तड़फा कर मुझे जमीन पर दे मारा, शस्त्रादिकों से मुझे चीरफाड़ डाला तथा बचाओ, बचाओ की प्रार्थना करते हुए भी अनेक बार मेरे टुकड़े २ कर डाले हैं। (५५) परमाधार्मिको ने पापकर्म से नरक स्थान में गये हुए मेरे शरीर के सरसों के पुष्पवर्णी तलवार, खड्ग, तथा भालों से दो खंड, अनेक खंड तथा अति सूक्ष्म खण्ड २ कर डाले। (५६) चमचमाते हुए धुरा तप्त जुभावाले तथा लोहे के रथ में परवशात् जोड़ कर तथा जुए के जोतों द्वारा वांध का जिस तरह लाठियों से.रोज (पशु विशेष ) को मारते वैसे ही मुझे भी मर्मस्थानों, अथवा जमीन पर डाल । खूष मार मारी है। , खूप मारमा ९ ।।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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