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विशेष प्रसिद्ध है, वे उस समय एक प्रभावशाली संघ के रूप में विद्यमान थे जब कि बौद्धधर्म की स्थापना की जा रही थी। ____ इससे यह सिद्ध होता है कि पाश्चात्य विद्वान, जो पहिले बौद्ध धर्म की अपेक्षा जैन धर्म को अर्वाचीन मानते थे,वे अब पुष्ट प्रमाण मिलने पर उसकी प्राचीनता को पूर्ण रूप से स्वीकार करने लगे हैं। इसके पहिले डॉ. वेवर, डॉ० लेसन प्रकृति कुछ उद्भट विद्वानों ने ऐसी भूल कैसे कर डाली-ऐसी यदि किसी को शंका हो तो उसका समाधान डॉ. हर्मन नेकोवी ने जैन सूत्रों की प्रस्तावना में इस प्रकार क्रिया हैं:
प्रो० लेसन ने इन दोनों धर्मों को एक ही माना है और वैसा मानने में निम्नलिखित चार कारण दिये हैं:
(१) भाषादृष्टि:-बुद्ध का संपूर्ण मौलिक साहित्य पाली भाषा में है किन्तु भगवान महावीर का साहित्य अध मागधी भाषा में है। इन दोनों साहित्यों में उन्हें बहुत शो में भाषा की समानता दिखाई दी।
(२) कई एक पारिभाषिक शब्द दोनों में एक ही है, जैसे कि जिन,, महंत, सर्वज्ञ, सिद्ध, बुद्ध, परिनिवृत्त, मुक्त आदि २।।
(३) अतीत तीर्थकरों की प्रायः बिलकुल मिलती हुई गुण पूजा । (४) अहिंसा आदि कई एक सिद्धान्तों की स्थूल समानता।
किन्तु डॉ० हर्मन जैकोबी ने अपनी जैनसूत्रों की प्रस्तावना में इन चारों कारणों पर खूब ही विस्तृत विश्लेषण कर वेद तथा बौद्ध धर्मों के सिद्धान्तों से जैन धर्म के सिद्धान्त बिलकुल मिन्न है, इतना ही नहीं किन्तु अनेक विषयों में तो जैनधर्म की बहुत सी विशेषताएं हैं इन बातों को अकाट्य प्रमाणों से सिद्ध कर दिखाई हैं।
जैन धर्म का प्रचार यहां पर एक शंका यह की जा सकती है कि जैन धर्म के विश्वव्यापी सिद्धांत होने पर भी यौद्ध धर्म के प्रचार के समान उसका प्रचार भारतवर्ष