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उत्तराध्ययन सूत्र
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(३२) मारपीट, तर्जन, वध तथा बंधन आदि के कष्ट सहना
भी आसान नहीं है। सदा भिक्षाचर्या करना, मांगने पर भी दिया हुआ ही ग्रहण करना, मांगने पर भी न मिलना
आदि के दुःख सहना बड़ा कठिन है। (३३) यह कापोती वृत्ति (कबूतर की तरह कांटे छोड़कर परि
मित अन्नकण का चुगना ) संयमी जीवन, दारुण केशलोच तथा दुर्धर ब्रह्मचर्य पालन श्रादि का पालन शक्ति
शालियों के लिये भी बड़ा हो कठिन है। टिप्पणी-जैन मुनियों को आजन्म हाथ से अपने केश उखादने की'
तपश्चर्या करनी पड़ती है। इसको केस लोच कहते है। (३४) मातापिता ने कहा:-हे पुत्र! तू सुकोमल है; भोग,
विलासों में अति आसक्त रहा है तथा भोगविलासों ही के योग्य तेरा शरीर है। हे पुत्र ! तू सचमुच सोधुत्व
धारण करने को समर्थ नहीं है। (३५) हे पुत्र! लोहे के भारी बोझ के समान आजीवन अवि
श्रांत रूप से संयमी के उचित गुणों का भार वहन करना,
तेरे लिये दुष्कर है । (३६) हे पुत्र! गगनचुम्बी धवल शिखर वाले चूल हिमवंत
पर्वत से निकलती हुई गंगा की धार रोकना अथवा दो हाथों से सागर को तर जाना जैसे अति कठिन है वैसे ही संयमी गुणों को पूर्णरूप से धारण करना तेरे लिये
अति कठिन है। . (३७) रेत का कौर ( जितना है उतना ही नीरस
(विषय-सुर . . प र की धार पर