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________________ मृगापुत्रीय १९५ टिप्पणी-जिसने स्त्रीभोग विषयक रस को जानलिया है उसकी अपेक्षा आजन्म ब्रह्मचारी के लिये ब्रह्मचर्य पालन करना अधिक सरल है क्योंकि भाजन्म ब्रह्मचारी को तो उस रसकी खबर न होने से संकल्प विकरुप या स्मरण होने का कारण ही नहीं है किन्तु जो उस रस को जानता है वह तो स्मरण, संकल्प विकल्र, तथा उसके बाद मान. सिक, वाचिक तथा शारीरिक ब्रह्मचर्य की बड़ी मुश्किल से रक्षा कर सकता है। (२९) धन धान्य या दास दासी आदि किसी भी प्रकार का परिग्रह न रखना तथा हिंसादि सभी क्रियाओं का त्याग करना बड़ा ही कठिन है। त्याग करके भी आसक्ति का न रखना यह और भी कठिन है। (३०) साधु अन्न, पानी, मेवा, या मुखवास इन चारों में से किसी भी प्रकार का श्राहार रात्रि को ग्रहण नहीं कर सकता तथा किसी भी वस्तु का दूसरे दिवस के लिये संग्रह नहीं कर सकता। यह छठा व्रत है और यह भी अति कठिन है। टिप्पणी-जैन साधु को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह इन पांच महाव्रतों का मन, वचन, काय से विशुद्ध रीति से भाजीवन पालन करना पड़ता है। तथा रात्रि भोजन का भी सर्वथा त्याग करना पड़ता है। साधु जीवन में आने वाले आकस्मिक संकट(३१) क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक ( ध्यानावस्था में है डांस मच्छरों द्वारा कष्ट पहुँचना), कठोर वचन, दुःखद, स्थल, तृणस्पर्श, मल।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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