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________________ उत्तराध्ययन सूत्र vvv (२४) (तरुण पुत्र की उत्कट इच्छा देख कर) माता पिता ने कहा-हे पुत्र ! साधुपन अत्यन्त कठिन है। साधु पुरुष __ को हजारों गुण धारण करने पड़ते हैं । टिप्पणी-सच्चे साधु को समस्त दोपों को दूर कर हजारों गुणों का विकास करना पड़ता है। (२५) जीवन पर्यन्त जगत के समस्त जीवों पर समभाव रखना पड़ता है। शत्रु तथा मित्र दोनों को एक दृष्टि से देखना पड़ता है और चलते, फिरते, खाते, पीते आदि प्रत्येक क्रिया में होने वाली सूक्ष्मातिसूक्ष्म हिंसा का त्याग करना पड़ता है। सचमुच ऐसी परिस्थिति प्राप्त करना सर्व सामान्य के लिये दुर्लभ है । (२६) साधु जीवन पर्यन्त भूल में भी असत्य नहीं बोलता । सतत अप्रमत्त (सावधान) रहकर हितकारी किन्तु सत्य वचन ही बोलना यह वात बहुत बहुत कठिन है। (२७) साधु दांत कुरेदने की सींक तक भी स्वेच्छा पूर्वक दिये विना ग्रहण नहीं कर सकता। इस तरह की निर्दोप मिक्षा प्राप्त करना अति कठिन है। टिप्पणी-दशवकालिक सूत्र के तीसरे अध्ययन में ४२ दोपों का वर्णन है। टन दोपों से रहित भोजन को ही ग्रहण करने की साधु को माज्ञा है। (२८) कामभोगों के रस के जानकार के लिये अब्रह्मचर्य (मैथन) से बिलकुल विरक्त होना अत्यन्त कठिन वात है । ऐसा घोर अखंड ब्रह्मचर्य व्रत पालन करना अति अति कठिन है।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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