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मृगापुत्रीय
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(१८) (और हे माता पिता!) जो मुसाफिर अटवी (बीयां
बान जंगल) जैसे लम्बे मार्ग पर कलेवे के बिना मुसाफिरी करने को चल पड़ता है और आगे जा कर भूख प्यास
से अत्यन्त पीडित होता है।। (१९) उसी तरह जो आत्मा धर्म धारण किये बिना पर भव में
जाता है वह वहां जाकर अनेक प्रकार के रोगों तथा
उपाधियों से पीडित होता है। टिप्पणी-यह संसार एक प्रकार की अटवी है। जीव मुसाफिर है।
तथा धर्म कलेवा है । जो साथ में धर्म रूपी कलेवा हो तो ही पर जन्म में शान्ति मिल सकती है और समस्त संसार रूपी भटवी को
सकुशल पार कर सकता है । (२०) जो मुसाफिर अटवी जैसे लम्बे मार्ग पर कलेवा साथ ले
कर गमन करता है वह रास्ते में क्षुधा तथा तृषा से रहित । सुख से गमन करता है। (२१) उसी तरह जो आत्मा धर्म का पालन करके परलोक में
जाता है वह वहां अल्पकर्मी होने से सदैव नीरोग रह कर
सुख लाभ करता है। (२२) और हे मातापिता ! यदि घर में आग लग जाय तो घर
का मालिक असार वस्तु को छोड़ कर सब से पहिले
बहुमूल्य वस्तुएं ही निकालता है। (२३) उसी रह यह समस्त लोक जन्म, जरा, मरण से जल ?
रहा है। यदि आप मुझे आज्ञा दें तो मैं उसमें से (तुच्छ , काम भोगों को छोड़ कर ) केवल अपनी आत्मा को ही
उबार लूं।
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