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मृगापुत्रीय
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परम पुरुषार्थ द्वारा कर्मरूपी कांचली को भेदते है तथा अन्तिम ध्येय को प्राप्त कर शुद्ध वुद्ध और सिद्ध बन जाते हैं।
भगवान बोले(१) बड़े २ वृक्षों से गाढ बने हुए काननों, क्रीड़ा करने योग्य
उद्यानों से सुशोभित तथा समृद्धि के कारण रमणीय ऐसे सुप्रीव नामक नगर मे बलभद्र नामक राजा राज्य करता
था और उसकी पटरानी का नाम मृगावती था। (२) माता पिता का अत्यंत प्यारा तथा राज्य का एकमात्र
युवराज बलश्री नाम का उनके एक राजकुमार था जो दमितेन्द्रियों में अग्रणी था। उसको प्रजा मृगापुत्र कह
कर पुकारती थी। (३) वह दोगुन्दक (त्रायस्त्रिंशक जाति के ) देव की तरह
मनोहर रमणियों के साथ हमेशा नन्दन नामक महल में.
श्रानन्द पूर्वक क्रीड़ा किया करता था। टिप्पणी-देवलोक में त्रायस्त्रिशक नामक भोगी देव होते हैं। . (४) जिनके फर्श मणि तथा रत्नों से जड़े हुए हैं ऐसे महल में
बैठा हुआ वह खिड़की में से नगर के तीन रास्तों के संगम स्थानों, चौरस्तों तथा बड़े बड़े चौगानों को सरसरी तौर से
देख रहा था। (५) इतने में उस मृगापुत्र ने तपश्चर्या, संयम तथा नियमों को
धारण करने वाले अपूर्व ब्रह्मचारी तथा गुणों की खान के समान एक संयमी को वहां से जाते हुए देखा।