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मृगापुत्रीय
मृगापुत्र संबंधी
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डाकर्म के परिणाम कटु होते हैं। दुरात्मा की दुष्ट वासना
ॐ का अनुसरण करने में बड़ा भय है। केवल एक छोटी -सीभूल से इस लोक तथा परलोक दोनों में अनेक संकट भोगने पड़ते हैं। दुर्गति के दुःख इतने दारुण होते हैं जिनको सुन कर भी रीमे खड़े हो जाते है तो फिर उनको भोगने की तो चात ही क्या? .
मृगापुत्र पूर्व के संस्कारों के कारण योगमार्ग पर जाने के लिये तत्पर होता है। माता पिता अपने पुत्र को योगमार्ग में आने वाले दारुण संकटों तथा कष्टों का परिचय देते है। पुत्र उत्तर देता है :-माता पिता जी! स्वेच्छा से सहन किये हुए कष्ट कहां? और परतंत्र रूप से भोगने पड़ते दारुण दुःख कहां? इन दोनों में समानता हो ही नहीं सकती।
अन्त में मृगापुत्र की संयम ग्रहण करने की उत्कट अभिलापा माता पिता को पिघला देती है। संसार का त्याग कर तथा तपश्चर्या का मागे ग्रहण कर योगीश्वर मुगापुत्र इसी जन्म में