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संयतीय
(४८) सिंधु सोवीर देश के अग्रणी समान उद्दायन नामक महाराज ने राज्य छोड़कर संयम धारण किया और अन्त में मोक्षगति प्राप्त की ।
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(४९) काशी देश के ( सप्तम नन्दन नामक बलदेव ) राजा ने भी राज्य तथा काम भोगों को छोड़कर संयम महण किया और अन्त में कल्याण तथा सत्यमार्ग में पुरुषार्थ करके कर्मरूपी महावन को काट डाला ।
टिप्पणी - वासुदेव की विभूति तथा बल चक्रवर्ती की ऋद्धि से भाधी होती है । वासुदेव के बड़े भाई को बलदेव कहते हैं । बलदेव धर्म प्रेमी ही होते हैं और वे कभी भोगों में रक्त नहीं होते और नियम से मोक्षगामी होते हैं ।
(५०) अपयश का नाश करने वाले तथा महाकोर्ति वाले ऐसे विजय नामक राजा ने भी गुण समृद्ध राज्य को छोड़कर दीक्षा धारण की ।
टिप्पणी - विजय ये दूसरे नंबर के बलदेव हैं ।
(५१) उसी प्रकार प्रसन्नचित्तपूर्वक उग्र तपश्चर्या धारण कर महावल नामक राजर्षि भी माथा देकर केवल ज्ञानरूपी लक्ष्मी प्राप्त कर मुक्तिगामी हुए थे 1
टिप्पणी- उपरोक्त राजाओं के सिवाय दूसरे सात बलदेव राजा तथा दूसरे अनेक राजा भी जैनशासन में संयमी हुए हैं । यहाँ तो केवल थोड़े से ही प्रसिद्ध दृष्टांत गिनाए हैं ।
(५२) धीरपुरुष निष्प्रयोजन वाली वस्तुओं के साथ उन्मत्त की तरह स्वच्छंदी होकर कैसे विचरे ? ऐसा विचार करके