SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८४ उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पणी-चक्रवर्ती अर्थात् छह संट का अधिपति राजा। ऐसे महा. भाग्यशाली पुरुषों ने भी अपार समृद्धि तथा मनोरम कामभोगों को छोड़कर त्यागधर्म अंगीकार किया था । भरतखंड के १२ चक्रवर्तियों में से टपरोक्त १० मोक्षगामी हुए। तथा ८ वां चक्रवर्ती सुभूम तथा १२ वी चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त ये दोनों भोग भोगकर नरक गति में गये। जैन शासन में कौन २ राजा दीक्षित हुए हैं उनकी नामावलि (४४) प्रत्यक्ष शकेन्द्र की प्रेरणा होने से, प्रसन्न तथा पर्याप्त दशार्णभद्र ने दशार्ण राज्य को छोड़कर त्याग मार्ग स्वीकारा। (४५) साक्षान शकेन्द्र की प्रेरणा होने पर भी नमिराजा तो भोगों स अपनी आत्मा को वश में रखकर वैदेही नगरी तथा घर बार को छोड़कर चारित्र धर्म में सावधान हुए । (४६) कलिंग देश के करकंडु राजा, पांचाल देश के द्विमुखराजा, विदेह देश के (मिथिला नगरी के ) नमिराजेश्वर तथा गांधार देश के निर्गत नाम के राजेश्वर परिग्रह त्याग कर संयमी बने । टिप्पणी-ये चारों प्रत्येक बुद्ध ज्ञानी पुरुष हो गये हैं। प्रत्येक बुद्ध . , उसे कहते हैं जो किसी एक एक पदार्थ को देखकर बोध को प्राप्त (२७) राजाओं में अग्रणी के समान ये सब राजा अपने २ पुत्रों को राज्य देकर जिनशासन में अनुरक्त हुए थे और उनने चारित्र मार्ग की श्राराधना की थी।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy