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उत्तराध्ययन सूत्र
(२६) सत्य सिवाय दूसरे मान कपट युक्त मत प्रवत रहे हैं वे
निरर्थक तथा खोटे वाद हैं-ऐसा जान कर मैं संयम में
दत्तचित्त हो ईर्या समिति में तल्लीन रहता हूँ। टिप्पणी-सर्व श्रेष्ठ जैन शासन को जानकर उस मार्ग में मैं गमनः
करता हूँ। इर्या समिति यह जैन श्रमणों की एक क्रिया है। विवेक तथा उपयोगपूर्वक गमन करना-इसको इयां समिति
कहते हैं। (२७) (क्षत्रिय राजर्षि ने कहा:-) इन सव अशुद्ध तथा असत्य
दृष्टि वाले अनार्य मतों को मैंने भी जान लिया तथा परलोक के विषय मे भी जान लिया है इससे अब मैं सत्यरूप से प्रात्मस्वरूप को पहिचान कर मैं भी जैना
शासन में विचरता हूँ। टिप्पणी-क्षत्रिय राजर्पि ने सब यादों को जान लिया था और उनमें
अपूर्वता मालूम पड़ने से ही उनने पीछे से जैन जैसे विशाल शासना की दीक्षा ली थी।
यह सुनकर संयति मुनिने कहाः(२८) मैं पहिले महाप्राण नाम के विमान में पूर्ण आयुष्यधारी
कान्तिमान देव था। वहाँ की सौ वर्ष की उपमावाली
उत्कृष्ट श्रायु है जो बहुत लम्बे काल प्रमाण की होती है। टिप्पणी-पाँचवे देवलोक में मैं देवरूप में था तव मेरी मायु दस सागर
की थी। सर्व संख्यातीत महान काल प्रमाण को सागरोपम कहते हैं। (२९) में उस पंचम स्वर्ग (ब्रह्म) से चय कर मनुष्य योनि में
संयति राजा के रूप में अवतीर्ण हुआ हूँ। (निमिच