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उचराध्ययन सूत्र
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टिप्पणी-संसार का ऐसा स्वरूप बताने से उस संस्कारी राना का
हृदय वैराग्यमय हो गया। (१८) इस प्रकार योगीश्वर द्वारा सत्यधर्म सुनकर वह राजा
(पूर्व संस्कारों की प्रबलता से ) उसी समय संवेग (मोक्ष की तीव्र अभिलापा) तथा निर्वेद (कामभोग से विरक्ति),
को प्राप्त हुआ। (१९) अब संयति राजा राज्य छोड़कर गर्दभाली मुनि के पास
जैनदीक्षा धारण कर संयति मुनि वन गये । टिप्पणी-सच्चे वैराग्य के जागृत होने पर एक क्षण भी रहना मुश्किल है। ऐसे संस्कारी जीव अपूर्व आत्मवलशाली होते हैं।
गर्दभाली मुनीश्वर के शिष्य संयतिमुनि साधु जीवन में दृढ़ तथा गीतार्थ (ज्ञानी) बनकर गुरु आज्ञा लेकर एक बार ग्रामानुग्राम विचरते हुए एक स्थान पर आते हैं। वहां उन्हें एक दूसरे राजर्षि के दर्शन होते हैं। ये क्षत्रिय रामपि देवलोक से चयकर मनुष्य योनि में आये हैं। वे भी पूर्व के प्रवल संस्कारी होने से उन्हें श्रोढ़ा सा ही निमित्त मिलने पर जातिम्मरण ज्ञान होता है। और इस कारण त्यागी होर देशदेश विचर कर जिनशासन को शोभित
कर रहे हैं। (२०) राज्य को छोड़कर दीक्षित हुए वे क्षत्रिय मुनि; योगीश्वर
संयति से यो प्रश्न करते हैं:-“हे मुनीश्वर ! आपका श्रोजस्वी शरीर जैसा बाहर से दिखाई देता है वैसा ही
आपका हृदय भी श्रोजस्त्री तथा प्रसन्न है। (२१) श्रापका नाम क्या है ? पूर्वाश्रम में आपका क्या गोत्र था?
आप किस कारण से श्रमण हुए ? श्राप किस आचार्य